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पित्त दोष के लक्षण और पित्त दोष के कारण

शरीर में पित्त दोष का महत्व :-


आज हम इस पोस्ट में  शरीर में पित्त दोष से होने वाली बीमारियों के बारे में
जानेंगे। हमारे शरीर में पित्त दोष का बहुत बड़ा महत्व है। शरीर में गर्मी पैदा करने वाला तत्व पित्त कहलाता है। पित्त शरीर का पोषण करता है। पित्त अगर संतुलित हो तो यह शरीर में बल पैदा करता है और अगर यह दूषित हो जाये तो  विकार पैदा करता है। पित्त में अग्नि तत्व की प्रधानता होती है।  उसमे जल तत्व भी रहता है। 

पित्त गर्म, पतला, पीला, कडुआ, तीखा, स्निग्ध व खट्टा होता है। लिवर , तिल्ली , अग्नाशय , पक्वाशय, आमाशय व आते ये पंचामि कहलाती है। 

पित्त पांच प्रकार का होता है :-

  1. भाजक 
  2. रेचक 
  3. आलोचक 
  4. साधक 
  5. पित्त सतोगुणी 

पित्त का वर्षा ऋतू  में संचय होता है। और शरद ऋतू में प्रकुपित होता है।  हेमंत ऋतू में शांत रहता है। दोपहर व मध्य रात्रि , जवानी में यह सक्रिय रहता है। पित्त का स्थान नाभि से हृदय तक रहता है। पित्त स्वाद में कड़वा रहता है तथा जीभ व नेत्र का रंग लाल होता है।  शरीर की दशा गर्म रहती है। पेशाब का रंग पीला हो जाता है। जवानी में ही बाल सफ़ेद पित्त प्रधान व्यक्ति के हो जाते है। 

पित्त प्रधान व्यक्ति बुध्दिमान भी होता है। उसे पसीना अधिक आता है। उसमे क्रोध भी होता है, खाना ज्यादा खाना , छाती में जलन का अनुभव होना। 


पित्त के कार्य :-


शरीर को गर्मी देना , भोजन पहचानने में सहायक होना, शरीर को कोमल व कान्ति युक्त रखना, शरीर को निर्मल रखना, सत व रज गुण से युक्त होना तथा स्मृति बुध्दि को प्रदान करता है। 

पित्त की वृध्दि :-


पित्त की वृध्दि से त्वचा, नाख़ून, नेत्र व मलमूत्र पिले होने लगते है। 
जलन, पसीना, भूख, प्यास व गर्मी अधिक लगती है।  नींद कम आती है  नाड़ी व हृदय की गति तेज हो जाती है।  पित्त के कुपित होने से 44 प्रकार के रोग पनपते है। 

पीट की कमी :-


पित्त की कमी से शरीर के ताप में कमी होना, चेहरे की कांति कम होना, उत्साह घटना, पाचन शक्ति कमजोर होना , गर्म स्थान पर अच्छा लगता है। 

पित्त से होने वाले मुख्य रोग :-


पीलिया, अनिंद्रा, गर्म श्वास चलना, डकार आना, हृदय रोग, माइग्रेन, एसिडिटी , जलन पैदा होना , दस्त लगना, मोह होना , अधिक पसीना आना तथा गर्मी अधिक लगना आदि। 

उपचार :-

  1. शुध्दि क्रियाये - कुंजल केवल पित्त को बाहर निकालने  की कारगर क्रिया है।  एनिया आंत से अतिरिक्त पित्त निकालने में सहायक है। 
  2. योगासन - सूर्य नमस्कार , शंशाकसन , भुजंगासन , शवासन तथा योग निद्रा उपयोगी है। 
  3. प्राणायाम  -  अनुलोम विलोम , शीतकारी, शीतली, भ्रामरी , उज्जायी , नाड़ी शोधन व अड्डियान बंध लगाना। 
  4. ध्यान - प्रति दिन कम से कम 15 मिनट अवश्य करे। 



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