पिछली दो पोस्टो में हमने वात और पित दोषो के बारे में जाना। आज हम कफ दोष के बारे में जानने की पूरी कोशिश करेंगे। अगर अभी तक आपने हमारी पिछली पोस्ट( वात और पित दोष ) नहीं पढ़ी है तो पहले उन दोनों की के बारे में जाने और फिर कफ दोष के बारे जाने।
कफ प्रकृति :-
वाणी में भारीपन, मुंह का स्वाद न मीठा और न ही कड़वा , जीभ का रंग सफ़ेद , नेत्रों का रंग मटियाला तथा भागा सा शरीर होता है।
कफ दोष के भेद :-
कफ दोष के 5 भेद होते है।
कफ की कमी के कारण :-
भ्रम , अंगो में सुन्नता, जोड़ो में शिथिलता तथा जलन आदि इसके लक्षण है। मधुर, स्निग्ध , शीतल, नमकीन, सफ़ेद व भारी भोजन करना, दिन में सोने की इच्छा करना आदि।
कफ बढ़ने के कारण :-
मंदाग्नि , मीठा मुंह होना, मुंह में पानी आना , अरुचि , शरीर निस्तेज होना, सफ़ेद हो जाना, जड़ता, शीतलता , खांसी , जुकाम , शरीर में भारीपन , आलस्य, अतिनिन्द्रा आना , जोड़ो में पीड़ा होना, चिपचिपा सफ़ेद दस्त, बार -बार पेशाब आना आदि।
कफ के कार्य :-
कफ कुपित होने से उत्पन्न रोग :-
मीठा मुंह, मुंह में कफ आना, लार गिरना, गले में धरधराहट, सुस्ती बढ़ना, स्मरण शक्ति कम होना , भूख न लगना , बुध्दिमंद होना, मंदाग्नि , मूत्र अधिक आना , सफ़ेद मल आना , बहुत दस्त लगना आदि।
उपचार :-
कफ सफ़ेद , चिकनाहट पूर्ण , मधुर , शीतल, कोमल, और स्थिर होता है। यह लसिका धमनियों द्वारा प्रवाहित होता है। यह वजन में अधिक भारी होता है। कफ अंगो में ग्रीस का काम करता है। यह लेसदार होता है। अन्न व जल तत्वों से इसका निर्माण होता है। इसमें रस का गुण होने से यह मधुर है। रस दोष में पृथ्वी और जल की अधिकता के कारण यह शीतल होता है। सुबह व रात्रि के शुरू में कफ दोष की अधिकता रहती है।
भोजन करते समय लार के रूप में भोजन में मिलता है। हेमंत ऋतू में यह संचित होता है। वसंत ऋतू में कुपित होता है तथा ग्रीष्म ऋतू में शांत रहता है। फरवरी से मई तक इसका अधिक प्रभाव रहता है। बचपन में अधिक बनता है। इसी कारण उनकी नाक बहती रहती है। ह्रदय से लेकर कपाल तक कफ का क्षेत्र है।
भोजन करते समय लार के रूप में भोजन में मिलता है। हेमंत ऋतू में यह संचित होता है। वसंत ऋतू में कुपित होता है तथा ग्रीष्म ऋतू में शांत रहता है। फरवरी से मई तक इसका अधिक प्रभाव रहता है। बचपन में अधिक बनता है। इसी कारण उनकी नाक बहती रहती है। ह्रदय से लेकर कपाल तक कफ का क्षेत्र है।
कफ प्रकृति :-
वाणी में भारीपन, मुंह का स्वाद न मीठा और न ही कड़वा , जीभ का रंग सफ़ेद , नेत्रों का रंग मटियाला तथा भागा सा शरीर होता है।
कफ दोष के भेद :-
कफ दोष के 5 भेद होते है।
- क्लेदक
- अवलखक
- बोधक
- स्नेहन
- श्लेषक
कफ की कमी के कारण :-
भ्रम , अंगो में सुन्नता, जोड़ो में शिथिलता तथा जलन आदि इसके लक्षण है। मधुर, स्निग्ध , शीतल, नमकीन, सफ़ेद व भारी भोजन करना, दिन में सोने की इच्छा करना आदि।
कफ बढ़ने के कारण :-
मंदाग्नि , मीठा मुंह होना, मुंह में पानी आना , अरुचि , शरीर निस्तेज होना, सफ़ेद हो जाना, जड़ता, शीतलता , खांसी , जुकाम , शरीर में भारीपन , आलस्य, अतिनिन्द्रा आना , जोड़ो में पीड़ा होना, चिपचिपा सफ़ेद दस्त, बार -बार पेशाब आना आदि।
कफ के कार्य :-
- शरीर में स्वाभाविक समावस्था में सोम्यता व स्थिरता लाना।
- संधियों को जोड़ने का कार्य करना ( घुटने, कोहनी व कलाई )
- अंगो में स्थिरता रखने का कार्य करना।
- शुक्र का निर्माण करना।
- वात पित्त को कम करना।
- शरीर को बल प्रदान करना।
- सातो धातुओं ( वीर्य , मांस , मज्जा , अस्थि , त्वचा, चर्बी, रक्त , अंत:स्राव का संयोजन करना आदि।
कफ कुपित होने से उत्पन्न रोग :-
मीठा मुंह, मुंह में कफ आना, लार गिरना, गले में धरधराहट, सुस्ती बढ़ना, स्मरण शक्ति कम होना , भूख न लगना , बुध्दिमंद होना, मंदाग्नि , मूत्र अधिक आना , सफ़ेद मल आना , बहुत दस्त लगना आदि।
उपचार :-
- शुध्दि क्रिया - सूत्र व जल नेति तथा कुंजल क्रिया। नाक में दो - दो बून्द बादाम रोगन का डालना।
- आसन - सूर्य नमस्कार, शशंकासन , शिथिलतासन ,श्वासन करना।
- प्राणायाम - अनुलोम - विलोम , अभ्यन्तर आक्षेपी , कपालभाति , भस्त्रिका , नाड़ी शोधन ,सूर्य भेदी तथा भ्रामरी प्राणायाम करना।
- ध्यान - स्नेहन कफ को संतुलित करता है।
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